Our Universe And The Big Bang Theory in Hindi -जब आप रात में तारों को देखते हैं तो क्या सोचते हैं?
क्या आपने कभी तारे गिनने की कोशिश की?
संभवतः इसका जवाब होगा “हाँ!”, पर आप इसमें सफल नहीं हो पाए क्योकि आकाश में असंख्य तारे हैं। खैर वास्तविकता तो यही है की चाहे कितनी भी अँधेरी रात हो आप आकाश में केवल कुछ हज़ार तारे ही देख सकते हैं।
एक मिनट…! मैं ये नहीं कह रहा हूँ की universe में तारे नहीं हैं, in fact यूनिवर्स में 10 अरब खरब से ज्यादा तारे हैं।
बिग बैंग थ्योरी इन हिंदी
पर ये तारे हमारे universe में किस प्रकार से स्थित हैं…?
क्या ये तारे हमारे universe में randomly मतलब बेढंगे रूप से बिखरे हुए हैं ?
नहीं….! ये तारे universe में गुच्छों (clusters) के रूप में फैले हुए हैं तथा इन गुच्छों के बीच में ढेर सारा space या दूरी है। इन गुच्छों को वैज्ञानिकों ने गैलेक्सी (galaxy) नाम दिया है।
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Our Universe And The Big Bang Theory in Hindi
ब्रह्माण्ड में करोड़ो गैलेक्सी हैं और प्रत्येक गैलेक्सी में करोड़ो तारे हैं। हमारा सौरमंडल भी ऐसी ही किसी एक गैलेक्सी का हिस्सा है जिसे हम milky way कहते हैं। milky way नाम हमारे गैलेक्सी में दिखने वाली सफ़ेद रंग की पट्टी की वजह से पड़ा।
लगभग 2000 साल पहले तक अरस्तु व टॉल्मी का मानना था की पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केंद्र है और सब कुछ उसके चारो और परिक्रमा करता है। मगर आज हम इसके ठीक विपरीत ये जानते हैं की वास्तव में पृथ्वी ब्रह्माण्ड की किसी साधारण सी गैलेक्सी में मौजूद सूर्य जैसे किसी साधारण से तारे के चारो ओर परिक्रमा करने वाला एक साधारण सा पिंड है।
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मगर हमें ये सब पता कैसे चला?
खैर इसका श्रेय वैज्ञानिक एडविन हब्बल (Edwin Hubble) को जाता है। उन्होंने बहुत से तारों की पृथ्वी से दूरियाँ निकाली। और लगभग 9 गैलेक्सी का पता भी लगाया।
पर पृथ्वी पर बैठे-बैठे हम लोग ये तारों की दूरियाँ कैसे निकाल लेते हैं? well..! इसके लिए हम star parallax कांसेप्ट की मदद लेते हैं। star parallax कांसेप्ट की मदद से सबसे पहले हम हमारी गैलेक्सी में स्थित तारों की दूरियाँ निकालते हैं। star parallax में दरअसल पृथ्वी की कक्षीय गति के परिणामस्वरुप तारे की स्थिति में होने वाले आभासी परिवर्तन की सहायता से उसकी पृथ्वी से दूरी ज्ञात की जाती है।
अब आपके मन में अगला सवाल जो उठ रहा होगा वो यह होगा कि ‘इस विधि से तो हम हमारी गैलेक्सी में स्थित तारों की दूरियाँ ज्ञात करते हैं पर ये दूसरी गैलेक्सी में स्थित तारों की दूरियों का पता कैसे लगाया जाता है?’ खैर इसके लिए पहले हमें निम्न दो बिन्दुओं पर विचार करना होगा –
1) तारे की luminosity (ज्योति तीव्रता) मतलब तारा कितना प्रकाश उत्सर्जित करता है। यदि वह अधिक प्रकाश उत्सर्जित करेगा तो उसकी ज्योति तीव्रता (चमक) अधिक होगी यदि कम करेगा तो कम।
2) तारे की दूरी। स्पष्ट है जो तारा जितना दूर होगा उसकी चमक उतनी ही कम होगी जो जितना पास होगा उसकी चमक उतनी ही अधिक, जैसे की हमारा सूर्य।
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अब चूँकि हम अपने समीप के तारों की दूरियों के साथ-साथ उनकी स्पष्ट चमक के विषय में भी जानते हैं अतः हम उनकी luminosity का हिसाब लगा सकते हैं।
हब्बल व अन्य वैज्ञानिकों सिद्ध किया की कुछ विशेष प्रकार के तारों की luminosity हमेशा एक सी होती है। अतः यदि हम मान लें की अन्य गैलेक्सियों के कुछ विशेष प्रकार के तारों की luminosity हमारी गैलेक्सी में स्थित कुछ तारों की luminosity के समान है, तो हम उनकी दूरी का पता लगा सकते हैं।
अतः इस विधि द्वारा हम दूरस्थ तारों की दूरियों का पता लगाते हैं, और यदि बहुत से तारों की दूरियाँ एक जैसी मिलती हैं तो यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि वे एक क्लस्टर्स/गुच्छे में है अर्थात वे एक गैलेक्सी का निर्माण कर रहें हैं तथा तारों की यह दूरी उस गैलेक्सी की दूरी बन जाती है।
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कल्पना कीजिये यह खोज ‘ब्रह्मांड की हमारी समझ‘ को कहाँ ले आई है। अरस्तू और टोल्मी ने सोचा था की पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है, लेकिन अब हमें पता हैं की पृथ्वी एक साधारण सी गैलेक्सी में स्थित किसी साधारण से तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाला एक साधारण सा ग्रह है। तथा ब्रह्मांड में और भी बहुत सी गैलेक्सियाँ हैं जिनके अपने बहुत से तारें हैं, बहुत से ग्रह हैं।
सर आइजक न्यूटन पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह दिखाया कि श्वेत प्रकाश को विभिन्न रंगों के स्पेक्ट्रम में तोड़ा जा सकता है। जब दूरस्थ तारे से आने वाले प्रकाश को हम प्रिज्म से गुजारकर उसके स्पेक्ट्रम का अध्ययन करते हैं तो हमें उसमे विभिन्न प्रकार के रंग देखने को मिलते हैं। चूँकि तारों में विभिन्न रासायनिक तत्व होते हैं और क्योंकि कुछ रासायनिक तत्व कुछ विशिष्ट रंगों को अवशोषित करते हैं । ●बिग बैंग थ्योरी इन हिंदी ●
अतः कुछ तारों से उत्सर्जित प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कुछ रंग अनुपस्थित होते हैं जो स्पेक्ट्रम में ‘अवशोषित रेखाओं‘ (absorption lines) का निर्माण करते हैं। इन अवशोषित रेखाओं के द्वारा हम दिए गए तारे में उपस्थित तत्वों के संघटन का अनुमान लगा सकते हैं। obviously हम हमारी गैलेक्सी के तारों के absorption patterns के विषय में आसानी से जान सकते हैं।
वैज्ञानिक एडविन हब्बल ने अन्य गैलेक्सियों के तारों के स्पेक्ट्रमों का विश्लेषण किया। इस दौरान एक विचित्र बात जो उन्होंने नोटिस की वह यह थी कि हमारी गैलेक्सी व अन्य गैलेक्सियों के समान तारों के स्पेक्ट्रम में एक ‘स्पष्ट’ अंतर है। अन्य गैलेक्सियों के तारों के स्पेक्ट्रम में absorption lines लाल रंग की और सा थोड़ा सा विचलित (खिसकी हुई) थी।
इस क्रांतिकारी observation का मतलब समझने के लिए पहले हमें डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect) को जानना होगा।
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क्या है डॉप्लर प्रभाव…?
डॉप्लर प्रभाव का सिद्धांत ऑस्ट्रियन भौतिकशास्त्री क्रिस्चियन डॉप्लर ने दिया। डॉप्लर प्रभाव के अंतर्गत किसी गतिशील स्त्रोत (moving source) व स्थिर प्रेक्षक (motionless observer) अथवा स्थिर स्त्रोत व गतिशील प्रेक्षक अथवा गतिशील स्त्रोत व गतिशील प्रेक्षक के कारण किसी तरंग (wave) की आवृति (frequency) में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है।
वास्तव में इस प्रभाव का अनुभव हम अपने दैनिक जीवन में रोज़ करते हैं। जब कोई वाहन हमारी ओर आ रहा होता है तब हमें उसकी आवाज़ उच्च आवृति (निम्न तरंगदैर्ध्य/lower wavelength) की अर्थात् तेज़ सुनाई देती है, और जब कोई वाहन हमसे दूर जा रहा होता है तब हमें उसकी आवाज़ निम्न आवृति (उच्च तरंगदैर्ध्य/higher wavelength) की अर्थात् धीमी सुनाई देती है।
ठीक इसी प्रकार जब कोई प्रकाश स्त्रोत हमसे दूर जा रहा होता है तब हम प्रेक्षित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य थोड़ी सी बड़ी (higher wavelength) observe करते है तथा प्रेक्षित प्रकाश हल्का सा लाल रंग का प्रतीत होता है, इस वजह से हमें प्रेक्षित प्रकाश के स्पेक्ट्रम में absorption lines लाल रंग की ओर थोड़ा खिसकी हुई मिलती हैं।
ठीक इसी प्रकार, जब कोई प्रकाश स्त्रोत हमारी ओर आ रहा होता है तब हमें प्रेक्षित प्रकाश के स्पेक्ट्रम में absorption lines नीले रंग की ओर थोड़ा खिसकी हुई मिलती हैं।
अतः, जब अधिकाँश गैलेक्सियों से प्राप्त प्रकाश के स्पेक्ट्रम में absorption lines को लाल रंग की ओर खिसका हुआ देखा गया, तब डॉप्लर प्रभाव (Doppler Effect) के अनुसार यह निष्कर्ष निकाला गया कि ये गैलेक्सियाँ हमसे दूर जा रही हैं।
इससे अधिक विस्मयकारी तथ्य सन् 1929 में एडविन हब्बल द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र में देखने को मिला जिसमे यह बताया गया कि जो गैलेक्सी जितनी दूर है उसके स्पेक्ट्रम में लाल-विचलन (Red-Shift) उतना ही अधिक है। सामान्य शब्दों में कहे तो जो गैलेक्सी हमसे जितनी दूर है उसकी हमसे दूर जाने की रफ़्तार उतनी ही अधिक है। अर्थात्
ब्रह्मांड फ़ैल रहा है…! ( Universe is expanding…!)
इस सन्दर्भ में हब्बल ने एक नियम भी दिया जिसे हब्बल का नियम कहते हैं: v = H_0 * D, यहाँ v = दूर जा रही गैलेक्सी का वेग है, H_0 हब्बल नियतांक है और D उस गैलेक्सी की हमसे दूरी है।
यह तथ्य कि गैलेक्सियाँ एक दूसरे से दूर जा रही हैं एक संकेत देती है कि अगर हम भूतकाल अर्थात् बीते हुए समय के विषय में विचार करें, तो एक-दूसरे से दूर जाती ये गैलेक्सियाँ वर्तमान की अपेक्षा भूतकाल में एक-दुसरे के काफी निकट रही होंगी।
अब कल्पना कीजिये तब क्या होगा जब हम समय के थोड़ा और पीछे जाये…? क्या ये गैलेक्सियाँ कभी एक-दूसरे के इतने निकट भी थी कि इनका कुल आयतन एक काफी छोटे क्षेत्र में आ सकें…?
इस सन्दर्भ सन् 1927 में, एडविन हब्बल द्वारा प्रकाशित शोधपत्र के ठीक दो साल पहले, जॉर्ज लेमैत्रे (Georges Lemaitre) नामक वैज्ञानिक ने एक थ्योरी प्रस्तुत की जिसे हम बिग बैंग थ्योरी (Big Bang Theory) के नाम से जानते हैं जिसके अनुसार ब्रह्मांड एक समय, अनंत घनत्व (infinite density) व अति सूक्ष्म त्रिज्या (infinitesimally radius) वाले एक ‘मौलिक परमाणु (primeval atom) के अन्दर समाहित था। सरल शब्दों में, पूरा संसार एक अनंत घनत्व वाले मटर के दाने से भी लाख लाख गुणा छोटे बिंदू के अन्दर समाहित था। इसे वैज्ञानिक शब्दावली में singularity कहा जाता है।
अतः बिग बैंग मॉडल के अनुसार, हमारे ब्रह्मांड ने करीब 13.8 बिलियन साल पहले अत्यंत गर्म व अनंत घनत्व वाली एक अतिसूक्ष्म अवस्था से फैलना प्रारम्भ किया और आज भी फ़ैल रहा है। पर क्या ये हमेशा फैलता रहेगा या इसका कोई अंत भी है…?
Reference : mayankacademy.com
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