यदि आप राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 या NCF 2005 को समझना चाहते हैं। तो आपको नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर जी के निबंध “सभ्यता और प्रगति” का यह अंश ज़रूर पढ़ना चाहिए।
NCF 2005 को समझने में उनके निबन्ध “सभ्यता और प्रगति” का यह भाग मायने रखता है। तो आइए पढ़ते हैं उस भाग को-
NCF 2005 और रवींद्रनाथ टैगोर का निबन्ध “सभ्यता और प्रगति” का अंश
“जब मैं बच्चा था तो छोटी-छोटी चीजों से अपने खिलौने बनाने और अपनी कल्पना में नए नए खेल ईजाद करने की मुझे पूरी आज़ादी थी। मेरी ख़ुशी में मेरे साथियों का पूरा हिस्सा होता था; बल्कि मेरे खेलों का पूरा मज़ा उनके साथ खेलने पर निर्भर करता था।
एक दिन हमारे बचपन के इस स्वर्ग में वयस्कों की बाज़ार-प्रधान दुनिया से एक प्रलोभन ने प्रवेश किया। एक अंग्रेज दुकान से खरीदा गया खिलौना हमारे साथी को दे दिया गया; वह कमाल का खिलौना था-बड़ा और मानो सजीव। हमारे साथी को उस खिलौने पर घमंड हो गया और अब उसका ध्यान हमारे खेलों में इतना नही लगता था; वह उस कीमती चीज़ को बहुत ध्यान से हमारी पहुंच से दूर रखता था,अपनी इस ख़ास वस्तु पर इठलाता हुआ।
वह अपने अन्य साथियों से ख़ुद को श्रेष्ठ समझता था क्योंकि उनके खिलौने सस्ते थे। मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ कि अगर वह इतिहास की आधुनिक भाषा का प्रयोग कर सकता तो वह यही कहता कि वह उस हास्यास्पद रूप से श्रेष्ठ खिलौने का स्वामी होने की हद तक हमसे अधिक सभ्य था।
अपनी उत्तेजना में वह एक चीज़ भूल गया- वह तथ्य जो उस वक़्त उसे बहुत मामूली लगा था- कि इस प्रलोभन में एक ऐसी चीज़ खो गयी जो उसके खिलौने से कहीं श्रेष्ठ थी, एक श्रेष्ठ और पूर्ण बच्चा। उस खिलौने से महज उसका धन व्यक्त होता था, बच्चे की रचनात्मक ऊर्जा नही, न ही उसके खेल की दुनिया में साथियों को खुला निमंत्रण।”
Final words
NCF 2005 को समझने और CTET की Pedagogy को समझने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर जी का यह निबन्ध ज़रूरी था। NCF 2005 भी यही कहता है। बच्चे को एक पूर्ण बच्चा बनाओ, उसकी रचनात्मक शक्ति को खोने मत दो। उसकी जिज्ञासु प्रवृत्ति को नष्ट मत करो।
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मुझे आवश्यक अपडेट व शिक्षा जगत की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराया जाना अति सराहनीय है।