दोस्तों संज्ञा और सर्वनाम पढ़ने के बाद अब हम लोग क्रिया का अध्ययन करेंगे। जिस प्रकार हम लोगों ने संज्ञा और सर्वनाम की परिभाषा और उनके भेद उदाहरण सहित जाने उसी प्रकार क्रिया की परिभाषा , क्रिया के भेद उदाहरण सहित जानेंगे। दोस्तों हम लोग इस आर्टिकल में क्रिया किसे कहते हैं और क्रिया के भेद इतनी आसानी से समझेंगे कि कभी भी नहीं भूलेगा। UPTET, CTET, UPSSSC जैसे exams में भी यह नोट्स काम आएगी।
तो दोस्तों सबसे पहले समझेंगे कि क्रिया किसे कहते हैं? यानी की क्रिया की परिभाषा फिर उसके बाद क्रिया के भेद और उनकी परिभाषा उदाहरण सहित जानेंगे।
क्रिया किसे कहते हैं और उसके भेद || क्रिया examples || सकर्मक क्रिया उदाहरण || क्रिया कितने प्रकार की होती है || कर्म के आधार पर क्रिया के कितने भेद होते हैं || क्रिया अभ्यास || सकर्मक क्रिया की पहचान || अकर्मक क्रिया का उदाहरण || uptet hindi notes, ctet hindi notes, uptet important hindi grammar notes, ctet important notes of hindi grammar
क्रिया की परिभाषा
क्रिया की परिभाषा- जिन शब्दों से किसी काम का करना या होना पाया जाता है, उन्हें क्रिया कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम आदि की तरह यह विकारी शब्द होता है अर्थात लिंग वचन पुरुष आदि के अनुसार ये बदलती रहती है।।
धातु शब्दों में “ना” लगा कर क्रिया का निर्माण किया जाता है। जैसे खा धातु में ना लगाया तो बना खाना पठ धातु में ना लगाया तो बना पढ़ना, “लिख” धातु में “ना” लगाया तो बना लिखना आदि।
क्रिया के भेद
कर्म जाति तथा रचना के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं-
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
• सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया में कार्य का फल कर्ता पर ना पड़कर किसी अन्य चीज पर पड़ता है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।
सकर्मक क्रिया के साथ कर्म प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से हमेशा रहता है। उदाहरण के तौर पर समझेंगे कि रमेश खाना खाता है । रमेश क्या खाता है खाना खाता है मतलब उसकी खाना क्रिया खाने (भोजन) पर निर्भर है। इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण है सीता टेलीविजन देखती है।
• अकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के कार्य का फल केवल कर्ता पर ही पड़ता है उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं।
अकर्मक क्रिया का कोई कर्म नहीं होता। उदाहरण के तौर पर समझेंगे कि जैसे राजा सोता है , राहुल रोता है आदि। तो यहां पर क्रिया कर्म पर निर्भर नहीं है । यहां कोई कर नहीं आता है या अकर्मक क्रिया है।
सकर्मक क्रिया के भेद– सकर्मक क्रिया भी दो प्रकार की होती है पहली एक कर्मक दूसरी द्विकर्मक।
एक कर्मक जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि इसमें एक कर्म होगा और द्विकर्मक में एक से अधिक कर्म होते हैं अर्थात दो कर्म होते हैं। उदाहरण के तौर पर समझेंगे कि राधा गाना गाती है। तो यहां पर गाना गाती है तो एक कर्म हुआ गाना। पर राहुल रमेश को बैट से मारता है तो इस उदाहरण में एक कर्म बैट हुआ जोकि निर्जीव है दूसरा कर्म रमेश हुआ जो कि एक प्राणी है , सजीव है।
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बनावट या संरचना के आधार पर क्रिया के भेद
संरचना के आधार पर किया कि निम्न भेद हैं –
- प्रेरणार्थक क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- कृदंत क्रिया
प्रेरणार्थक क्रिया– जब कर्ता स्वयं कार्य ना करके किसी अन्य को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, तो वहां प्रेरणार्थक क्रिया होती है । जैसे लिखवाना, करवाना, बुलवाना आदि।
संयुक्त क्रिया- दो या दो से अधिक धातुओं के सहयोग से बनने वाली क्रियाओं को संयुक्त क्रिया कहा जाता है। जैसे– खो देना पा लेना आदि। यहां पर खोना और पाना के साथ देना और लेनाा जैसी क्रियाएं भी जुड़ी हुई है।
नामधातु क्रिया– संज्ञा सर्वनाम विशेषण इत्यादी से बनने वाली क्रिया को नामधातु क्रिया कहते हैं। जैसे– बतियाना, हथियाना, लतियाना आदि।
कृदन्त क्रिया- कृत प्रत्यय के संयोग से बनने वाली क्रिया को कृदंत क्रिया कहते हैं जैसे हंसता, चलता, दौड़ता आदि।
प्रयोग के आधार पर क्रिया के अन्य रूप
(1) सहायक क्रिया (Sahayak Kriya)
(2) पूर्वकालिक क्रिया (Purvkalik Kriya)
(3) सजातीय क्रिया (Sajatiya Kriya)
(4) द्विकर्मक क्रिया (Dvikarmak Kriya)
(5) विधि क्रिया (Vidhi Kriya)
(6) अपूर्ण क्रिया (Apurn Kriya)
(a) अपूर्ण अकर्मक क्रिया (Apurn Akarmak Kriya)
(b) अपूर्ण सकर्मक क्रिया (Apurn Sakarmak Kriya)
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(1) सहायक क्रिया-(Sahayak Kriya) मुख्य क्रिया की सहायता करनेवाली क्रिया को सहायक क्रिया कहते हैं ।
जैसे- उसने बाघ को मार डाला ।
सहायक क्रिया मुख्य क्रियां के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती है । कभी एक और कभी एक से अधिक क्रियाएँ सहायक बनकर आती हैं । इनमें हेर-फेर से क्रिया का काल परिवर्तित हो जाता है ।
जैसे- वह आता है ।
तुम गये थे ।
तुम सोये हुए थे ।
हम देख रहे थे ।
इनमे आना, जाना, सोना, और देखना मुख्य क्रिया हैं क्योंकि इन वाक्यों में क्रियाओं के अर्थ प्रधान हैं ।
शेष क्रिया में- है, थे, हुए थे, रहे थे– सहायक हैं। ये मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करती हैं ।
(2) पूर्वकालिक क्रिया-(Purvkalik Kriya) जब कर्ता एक क्रिया को समाप्त करके तत्काल किसी दूसरी क्रिया को आरंभ करता है, तब पहली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं ।
जैसे- वह गाकर सो गया।
मैं खाकर खेलने लगा ।
(3) सजातीय क्रिया-(Sajatiya Kriya) कुछ अकर्मक और सकर्मक क्रियाओं के साथ उनके धातु की बनी हुई भाववाचक संज्ञा के प्रयोग को सजातीय क्रिया कहते हैं । जैसे-अच्छा खेल खेल रहे हो । वह मन से पढ़ाई पढ़ता है । वह अच्छी लिखाई लिख रहा है ।
(4) द्विकर्मक क्रिया-(Dvikarmak Kriya) कभी-कभी किसी क्रिया के दो कर्म (कारक) रहते हैं । ऐसी क्रिया को द्विकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे-तुमने राम को कलम दी । इस वाक्य में राम और कलम दोनों कर्म (कारक) हैं ।
(5) विधि क्रिया-(Vidhi Kriya)जिस क्रिया से किसी प्रकार की आज्ञा का ज्ञान हो, उसे विधि क्रिया कहते हैं । जैसे-घर जाओ । ठहर जा।
(6) अपूर्ण क्रिया-(Apurn Kriya)जिस क्रिया से इच्छित अर्थ नहीं निकलता, उसे अपूर्ण क्रिया कहते हैं। इसके दो भेद हैं- (1) अपूर्ण अकर्मक क्रिया तथा (2) अपूर्ण सकर्मक क्रिया।
(a) अपूर्ण अकर्मक क्रिया-(Apurn Akarmak Kriya) कतिपय अकर्मक क्रियाएँ कभी-कभी अकेले कर्ता से स्पष्ट नहीं होतीं । इनके अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ कोई संज्ञा या विशेषण पूरक के रूप में लगाना पड़ता है। ऐसी क्रियाओं को अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे – वह बीमार रहा । इस वाक्य में बीमार पूरक है।
(b) अपूर्ण सकर्मक क्रिया–(Apurn Sakarmak Kriya) कुछ संकर्मक क्रियाओं का अर्थ कर्ता और कर्म के रहने पर भी स्पष्ट नहीं होता । इनके अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इनके साथ कोई संज्ञा या विशेषण पूरक के रूप में लगाना पडता है । ऐसी क्रियाओं को अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहा जाता है ।
जैसे-आपने उसे महान् बनाया । इस वाक्य में ‘महान् पूरक है।
अन्य महत्वपूर्ण लिंक्स-
• सकर्मक और अकर्मक क्रिया में अंतर कैसे जानें, पढ़ें विस्तार से उदाहरण सहित
• संज्ञा की परिभाषा एवं संज्ञा के भेद उदाहरण सहित [सरल ढंग से]
• सर्वनाम की परिभाषा एवं सर्वनाम के भेद उदाहरण सहित [आसान तरीके से]