चिंतन क्या है? चिंतन एक मानसिक प्रक्रिया है ।किसी समस्या के समाधान हेतु हम अपने मस्तिष्क में जो लगातार विचार करते रहते है वही चिंतन है।
यह एक जटिल प्रक्रिया है। जब हमारे सामने कोई समस्या आती है तो हम उस समस्या के समाधान हेतु लगातार कोई युक्ति सोचते रहते है जब समस्या का समाधान मिल जाता है तो हमारा चिंतन प्रक्रिया भी समाप्त हो जाती है।
चिंतन की परिभाषाएं ( Definitions of Thinking )
रास के अनुसार चिंतन की परिभाषा
“चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है ।यह मन की बातो से संबंधित मानसिक क्रिया है”।
गैरेट के अनुसार चिंतन की परिभाषा
चिंतन एक प्रकार का अदृश्य व्यवहार है। जिसमे सामान्य रूप से प्रतीको का प्रयोग होता है।
रायबर्न के अनुसार चिंतन की परिभाषा
चिंतन इच्छा संबंधी क्रिया है जो किसी असंतोष के कारण आरंभ होती है और प्रयास के आधार पर चलती हुई स्थिति पर पहुंच जाती है जो इच्छा को संतुष्ट करती है।
चिंतन के प्रकार (Types of Thinking)
चिंतन चार प्रकार के होते है सभी प्रकार के बारे में हम विस्तार से जानेंगे।
1- तार्किक चिंतन
यह लक्ष्य निर्धारित चिंतन होता है तथा यह विचारात्मक चिंतन है।जब हम कोई चीज का चिंतन मनन करते है तो तार्किक चिंतन होता है ।
2.संप्रत्यात्मक चिंतन
इस चिंतन किसी व्यक्ति या वस्तु को देख कर उसके प्रति भविष्य के लिए दिमाग में रख लेते है और भविष्य में उसे देख कर उसको पहचाना जा सकता है ।
यह मूल तत्वों से संबंधित है भौतिक निर्माण की प्रक्रिया से संबंधित है।मानसिक जगत से संबंधित है तथा इसका क्षेत्र असीमित है।
3. प्रत्यक्षात्मक चिंतन
इस प्रकार का चिंतन पूर्व अनुभवों पर आधारित होता है।बाहरी आवरण से संबंधित होता है ।किसी वस्तु की भौतिक सरंचना संबंधी विचार इसमे किए जाते है।इसका क्षेत्र सीमित होता है।
4.कल्पनात्मक चिंतन
इस प्रकार के चिंतन व्यक्ति कल्पनाओं के सहारे सोचता रहता है मतलब कल्पनाएं अधिक करता है।
उदाहरण जब किसी बालक के पिताजी प्रतिदिन शाम को कुछ खाने को लाते है तो रोज वो वो शाम को कल्पनाएं करता रहता है की आज पापा खाने में कुछ ला रहे होंगे।
चिंतन प्रक्रिया के साधन
पदार्थ (object)
पदार्थ वह उद्दीपक है जो प्रत्यक्ष उपस्थित रहता है ।और व्यक्ति के प्रत्यक्षात्मक चितन का आधार है।
बिंब (image)
जब पदार्थ उपस्थित नहीं होता तब व्यक्ति एक मानसिक चित्र बनाता है जो उसके व्यक्तिगत अनुभव या दृश्यों पर आधारित होता है।
यह दो प्रकार के होते है-
2-कल्पना बिंब
संप्रत्यय
संप्रत्यय मानसिक संरचनाएं होती है तथा संप्रत्यय चिंतन का आधार है।
यह दो प्रकार का होता है
1-मूर्त संप्रत्यय
2-अमूर्त संप्रत्यय
प्रतीक व चिह्न ( Symbol )
जिसका विशिष्ट महत्व होता है तथा ये मुख्य रूप से प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियां है।
चिंतन की विशेषता
- चिंतन एक लक्ष्य आधारित क्रिया है अर्थात चिंतन करने के पश्चात व्यक्ति किसी न किसी लक्ष्य पर जरूर पहुंचता है।चिंतन कभी व्यर्थ नहीं जाता है अर्थात चिंतन उद्देश्यपरक होता है।
- लगातार सोचने से चिंतन करने से व्यक्ति के समस्याओं का समाधान होता है।
- चिंतन एक जटिल प्रक्रिया है एवं एक विस्तृत प्रक्रिया है।
चिंतन के तत्व ( Elements of Thinking )
वुडबर्थ ने चिंतन के निम्नलिखित पांच तत्व बताए है
- लक्ष्य की ओर उन्मुख होना
- लक्ष्य प्राप्ति के लिए इधर उधर घूमना
- अनुभवों को पुनः स्मरण करना
- अनुभवों को नए रूप में आयोजित करना
- आंतरिक वाकगतिया एवं मुद्राए
चिंतन का विकास (Development of Thinking)
चिंतन का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत महत्व है।बालको का चिंतन के क्षेत्र में विकास करने के लिए शिक्षकों को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-
अनुभवों का विकास
चिंतन प्रक्रिया में अनुभवों का प्रमुख स्थान है अतः शिक्षक को चाहिए की बालको के समक्ष ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करे जिससे वो प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त कर सके।
भाषा का विकास
भाषा चिंतन की अभिव्यक्ति का आधार है अतः शिक्षक को बालक की भाषा एवं उसकी शब्दकोश का ध्यान रखना चाहिए।
ध्यान एवं रुचि का विकास करना
जब तक बालक का किसी आदर्श के प्रति रुचि नहीं होगी। तब तक वह उसमे चिंतन नहीं कर सकता।
रटने की आदत को दूर करना
यदि बालक रटने की आदत को दूर करता है तो उसमे तर्क या चिंतन शक्ति का विकास होगा।
वाद विवाद के अवसर प्रदान करना
बालक को वाद विवाद के अवसर प्रदान करना चाहिए जितना उसे बोलने का मौका मिलेगा उतना उसकी सोचने या चिंतन करने की शक्ति में विकास होगा।
फाइनल वर्ड
तो दोस्तों आज हमने इस आर्टिकल से सीखा कि – चिन्तन क्या है, चिंतन के प्रकार क्या क्या हैं, चिंतन के साधन क्या हैं, चिंतन को परिभाषाएं, चिंतन के तत्व, चिंतन का विकास कैसे किया जा सकता है।
उम्मीद है आपको ये टॉपिक अच्छे से समझ में आया होगा।