बाल विकास की अवस्थाएं, महत्वपूर्ण परिभाषाएं, अन्य नाम, विशेषताएं, शारीरिक विकास, शिक्षा का स्वरूप

दोस्तों आज हम आपको बाल विकास की अवस्थाएं बताएंगे और साथ ही साथ इनकी परिभाषाएं विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बताएंगे।

बाल विकास की अवस्थाएं

बाल विकास के अंतर्गत विकास की चार अवस्थाएं है-

  1. शैशवावस्था
  2. बाल्यावस्था
  3. किशोरावस्था
  4. प्रौढ़ावस्था
बाल विकास की अवस्थाएं | शैशवावस्था | बाल्यावस्था | किशोरावस्था
बाल विकास की अवस्थाएं | शैशवावस्था | बाल्यावस्था | किशोरावस्था

बाल विकास के अंतर्गत अध्ययन करने हेतु अवस्थाएं

लेकिन बाल विकास के अंतर्गत केवल तीन अवस्थाओं का अध्ययन ही किया जाता है।

1 शैशवास्था (जन्म से 6वर्ष तक )

2 बाल्यावस्था (6से12वर्ष तक )

3 किशोरावस्था (12से18वर्ष तक )

शैशवावस्था ( जन्म से 6 वर्ष तक )

शैशवावस्था बालक की सबसे महत्वपूर्ण अवस्था मानी जाती है

क्योंकि इस अवस्था में बालक मां के गर्भ से निकल एक अलग दुनिया में प्रवेश करता है तथा नया वातावरण प्राप्त करता है । शैशावस्था बालक के लिए आदर्शकाल के रूप में जाना जाता है।

वेलेंटाइन के अनुसार

“शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है “

थार्नडाइक के अनुसार शैशवावस्था की परिभाषा

शैशवावस्था में 3 से 6 वर्ष की आयु के बालक प्रायः अर्द्धस्वप्न की अवस्था में रहते हैं।

फ्रायड के अनुसार के परिभाषा

“व्यक्ति को को कुछ बनाना होता है वह चार पांच वर्षो में बन जाता है। “

वाटसन के अनुसार शैशवावस्था की परिभाषा

शैशवास्था में सीखने की गति और विकास की सीमा अन्य अवस्था की तुलना में अधिक होती है।

गैसल के अनुसार शैशवावस्था की परिभाषा

प्रथम 6 वर्ष का बालक 12 वर्ष का दुगुना सीख लेता है।

गुड एन एफ के अनुसार शैशवावस्था की परिभाषा

व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है उसका आधा 3तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है।

एडलर के अनुसार शैशवावस्था की परिभाषा

बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही निश्चित किया जाता है की उसका जीवन में क्या स्थान है।

शैशवावस्था के अन्य नाम

इस अवस्था को और अन्य नामों से भी जाना जाता है जो निम्नलिखित है ~ 
1.खिलौने की अवस्था  
2.अतर्किक चिंतन की अवस्था 
3.अनुकरण द्वारा सीखने की अवस्था 
4.जीवन का महत्वपूर्ण काल 

शैशवावस्था की विशेषताएं

1.शारीरिक विकास की तीव्रता

शैशवावस्था में भारत का शारीरिक विकास बड़ी तीव्र गति से होता है। शुरुआत के 3 वर्षों में शिशु का शारीरिक विकास तीव्र गति से होता है इसके पश्चात विकास की गति धीमी हो जाती है।

2.मानसिक विकास की तीव्रता

शैशवावस्था में मानसिक विकास जैसे संवेदना ,कल्पना ,स्मृति आदि तीव्र गति से होता है ।तीन वर्षो तक लगभग शिशु का संपूर्ण मानसिक विकास हो जाता है।

3.सीखने का आदर्शकाल

शैशवावस्था में शिशु बहुत ही तीव्र गति से सीखता है। उनके सीखने की गति भी तीव्र होती है इसलिए इसे सीखने का आदर्श काल कहा जाता है।

4.कल्पना की सजीवता

शैशवावस्था में शिशु की कल्पनाओं भी एक जीवन पाया जाता है वो जो सोचते है उसे वैसे मानते भी है अर्थात वो कल्पनाओं को कल्पना मात्र न मानकर उसे सत्य मानते है।

5.दूसरो पर निर्भरता

शैशवावस्था में शिशु स्वयं के कार्य के लिए दूसरे पर निर्भर होता है जैसे शारीरिक कार्यों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहता है।

6. आत्मप्रेम/ स्वप्रेम की भावना

शैशवावस्था में बालक के अंदर खुद से प्रेम करने की भावना होती है वह दूसरो का भला बुरा नही सोचते वह सिर्फ अपना भला सोचते है। सारा प्रेम वह खुद ही चाहता है।

7.सवेंगो का विकास

2 वर्षों तक बालक में लगभग सभी संवेग का विकास हो जाता है शिशु में चार प्रकार के संदेश भय क्रोध प्रेम पीड़ा होते हैं।

8. कामवासना की प्रवृत्ति

शैशवावस्था में शिशु में काम वासना अधिक प्रबल होती है वह वयस्को के समान व्यक्त नहीं कर पाते तो इसे माता के स्तनपान के द्वारा व्यक्त करते है।

9.जिज्ञासा की प्रवृत्ति

शैशवावस्था में शिशु में जिज्ञासा की प्रवृत्ति अधिक रहती है उनके पास क्यों? क्या? कब? सवाल अधिक रहते हैं चीजों को जानने के लिए वो बहुत उत्सुक रहते हैं।

10.अनुकरण द्वारा सीखने की प्रवृत्ति

शैशवावस्था में बालक की अंदर लोगो का अनुकरण कर सीखने की प्रवृत्ति तीव्र रहती है ।वो अपनी सगे संबंधी माता पिता द्वारा किए गए कार्यों का अनुकरण करके सीखते है।

शैशवावस्था का शारीरिक विकास

वजन ~3किलोग्राम
मस्तिष्क का भार ~1किलो250ग्राम /1350 ग्राम


6माह में दुगुना हो जाता है
धड़कने 140
हड्डियों की संख्या ~270

शैशवावस्था में शिक्षा का स्वरूप

  1. शैशावस्था में शिशु को शांत वातावरण में शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए।
  2. बच्चे दूसरो पर निर्भर रहते है अतः उन्हे डांटना या पीटना नही चाहिए जो प्रश्न पूछे उसका जवाब बड़े ही सहानुभति से देना चाहिये
  3. बच्चों की जिज्ञासा को शांत करने के लिए बड़े ही धैर्य के साथ उनका जवाब दे।

बाल्यावस्था (6 से 12 वर्ष तक)

बाल्यावस्था को मिथ्या परिपक्वता की अवस्था भी कहा जाता है।क्योंकि इस अवस्था में बालक झूठ बोलते है तरह तरह के कामों के लिए कई बहाने बनाते है। इस अवस्था में बालक बाहर दुनिया से जुड़ जाते है अतः बालक बहिर्मुखी प्रवृत्ति के हो जाते है।


रास के अनुसार बाल्यावस्था की परिभाषा

“बाल्यावस्था मिथ्या परिपक्वता की अवस्था है”।

कोल व ब्रूस के अनुसार बाल्यावस्था की परिभाषा

“बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है”।

स्टैग के अनुसार बाल्यावस्था की परिभाषा

“शायद ही कोई खेल हो जो 10 वर्षो का बालक न खेल पाए”


किलपैट्रिक के अनुसार बाल्यावस्था की परिभाषा

“बाल्यावस्था को प्रतिद्वंदात्मक समाजीकरण का काल कहा जाता है”


बाल्यावस्था को दो भागों में बांटा गया है
संचयी काल (6 से 9वर्ष तक )
परिपाक काल (9से 12 वर्ष )

बाल्यावस्था के अन्य नाम


इस अवस्था को अन्य निम्नलिखित नामों से भी जाना जाता है ~
1.निर्माणकारी काल
2.डर्टी एज
3.स्फूर्ति की अवस्था
4.प्रारंभिक विद्यालय की आयु
5.टोली/ समूह की अवस्था
6.मूर्त चिंतन की अवस्था
7.जीवन का अनोखा काल
8.खेल की अवस्था

बाल्यावस्था की विशेषताएं

1 शारीरिक विकास में स्थिरता– इस अवस्था बालक के शारीरिक विकास में कोई खास वृद्धि नहीं होती है अर्थात उनका शारीरिक विकास न के बराबर होता है।


2 मानसिक विकास में स्थिरता


3 मानसिक योग्यताओं में वृद्धि


4 वास्तविक जगत से संबंध ~ बाल्यावस्था में बालक का वास्तविक जगत से संबंध स्थापित हो जाता है ।कल्पनाओं वाली दुनिया का अंत हो जाता है ।


5 जिज्ञासा की प्रबलता– शैशवावस्था के समान इस अवस्था में भी बालक की जिज्ञासा बनी रहती है उसे हर बातों को जानने की उत्सुकता बनी रहती है

6 रचनात्मक कार्यों में आनन्द- बाल्यावस्था में बालक को रचनात्मक कार्य में काफी रुचि रहती है वह उन्हें कलात्मक कार्यों में रुचि रहती है ।और सभी रुचि पूर्वक इन कार्यों को करते हुए आनंद प्राप्त करते है।


7 समूह भावना का विकास ~ बाल्यावस्था में बच्चे अकेले नहीं टोली या समूह में रहके खेलना अधिक पसंद करते है उनमें समूह बनाने की प्रवृत्ति रहती है इसी वजह से इस अवस्था को “गैंग एज” “गेम एज” भी कहते है।


8 निरुद्देश्य भ्रमण की भावना– बाल्यावस्था में बालक बिना किसी उद्देश्य की कही भी घूमते है उनका कोई लक्ष्य नही रहता है कही भी किसी के साथ घूमना पसंद करते है ।


9 कामशक्ति की न्यूनता– इस अवस्था में काम शक्ति सुसुप्त अवस्था में रहती है ।अर्थात बालक में कामवासना की प्रवृत्ति नगण्य रहती है ।


10 बहिर्मुखी– बाल्यावस्था में बालक बाहरी दुनिया से जुड़ा होता है अंतरिक चिन्तन काम करता है हो प्रत्यक्ष होता उसके सामने उसपर ही ध्यान केंद्रित करता है ।


11 सवेंगो का नियंत्रण– इस अवस्था में बालको का अपने उपर नियंत्रण होता है अर्थात क्रोध आदि पर उनका नियंत्रण रहता है। उनके द्वारा बताई गई बुरी बात को बुरा ही समझते है तथा अच्छी बात को अच्छा ही समझते है।

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास

वजन 12वर्ष के अंत में 80से 95 पौंड मस्तिष्क का भार शरीर के भार का 90%
धड़कने 72 हड्डियों की संख्या 350

बाल्यावस्था का शिक्षा में स्वरूप

1. बाल्यावस्था में बालक की भाषा में रुचि होती है अतः कई भाषाओं के बारे में सीखने का मौका देना चाहिए।


2 बालक समूह में खेलना पसंद करते है इसलिए उनके समूह m निरीक्षण कर की किस प्रकार दोस्त है समूह में कही गलत संगत तो नही है।


3 रचनात्मक कार्यों में रुचि होती है अतः उन्हे विद्यालय में मौका दे रचनात्मक कार्य करने का।


4 बच्चे भ्रमण में रुचि रखते है अतः विद्यालय से टूर में ले जाने का प्रबंध होना चाहिए।

किशोरावस्था (13 से 18 वर्ष )

बाल विकास की दृष्टि से यह अवस्था भी अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है।किशोरावस्था शब्द लैटिन भाषा के शब्द adolescare से बना है जिसका अर्थ है प्रजनन या विकसित होना। किशोरावस्था बाल्यावस्था के अंत से शुरू होती है तथा प्रौढ़ावस्था के शुरुआत में ही समाप्त हो जाती है ।इसे बाल्यावस्था और युवावस्था या प्रौढ़ावस्था के मध्य का संधिकाल भी कहा जाता है।

स्टेनली हाल के अनुसार किशोरावस्था की परिभाषा

“किशोरावस्था बड़े संघर्ष ,तनाव, दबाव, विरोध ,झंझावत और तूफानों की अवस्था है”।

हाल के अनुसार किशोरावस्था की परिभाषा-

“एक नया जन्म है क्योंकि इसी में श्रेष्ठतर एवं उच्चतर मानवीय विशेषताओं के दर्शन होते है “।

रास के अनुसार किशोरावस्था की परिभाषा –

” किशोरावस्था शैशवास्था का पुनरावर्तन काल है।

क्रो एंड क्रो के अनुसार किशोरावस्था की परिभाषा

“किशोर ही वर्तमान की शक्ति एवं भावी जीवन का आधार है”।

किशोरावस्था के अन्य नाम

इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है ~
1तूफानों की अवस्था
2जीवन का सबसे कठिन काल
3जीवन का बसंत काल
4सुंदर अवस्था

बाल्यावस्था, शैशावस्था, किशोरावस्था के अन्य नाम
शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था के अन्य नाम

किशोरावस्था की विशेषताएं

शारीरिक एवं मानसिक विकास में तीव्रता- किशोरावस्था में बालक का शारीरिक एवं मानसिक विकास बड़ी ही तीव्र गति से होता है और शारीरिक विकास की दृष्टि से यह अवस्था महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस अवस्था में बालको में दाढ़ी और मूछे आने लगती है एवं लड़कियों में मासिक धर्म शुरू हो जाता है।

कल्पना की बहुल्यता – किशोरावस्था में मस्तिष्क का विकास सभी दिशाओं में होता है अतः किशोर एवं किशोरियों के तर्क करने एवं चिंतन करने की शक्ति में वृद्धि होती अतः किशोरावस्था में बालक बालिकाएं अपने अपने कल्पनाओं या सपनो में खोए रहते है वो अपनी अलग ही दुनिया में खोए रहते है।

सवेंगों में अस्थरिता एवं समायोजन का अभाव – किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में अवेगो एवं सवेगो में प्रबलता होती है ।वे अलग अलग व्यवहार करते है तथा जल्दी किसी से समायोजन नहीं बैठा पाते इन्हे कठिनाई की अनुभूति होती है।काम वासना की परिपक्वता किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं में काम वासना की प्रबलता रहती है तथा उनमें विषम लिंगी प्रेम के प्रति आकर्षण रहता है ।

वीर पूजा की भावना – किशोरावस्था में बालक या बालिकाएं किसी एक को अपना आदर्श मान लेते है और उसी का अनुसरण करते है ।जैसे किसी अभिनेता या किसी महापुरुष को अपना नायक बना लेना।

स्वतंत्रता एवं विद्रोह की भावना – किशोरावस्था में किशोरों को स्वतंत्रता पसंद होती है और अगर इनपर किसी प्रकार का प्रबंध लगाया जाय तो ये विद्रोह करने लगते है।

व्यवसाय चयन नौकरी एवं भविष्य की चिंता – किशोरावस्था में बालको में अपने भविष्य की चिंता सताने लगती है एक अच्छे स्थान पर पहुंचने एवं नौकरी आदि की चिंताएं होने लगती है।

रुचियों में परिवर्तन- किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं की रुचियों में परिवर्तन होने लगते है 15 साल तक ये परिवर्तन होते है इसके पश्चात वो स्थिर हो जाते है।

समाज सेवा की भावना– किशोरावस्था में समाज के प्रति सेवा की भावना जागृत होने लगती है धीरे धीरे इनमे अपने जाति एवं धर्म के प्रति अलग भावनाएं आने लगती है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास

वजन– लडको का भार लड़कियों के भार से 25पौंड अधिक होता है
मस्तिष्क का भार -1300से 1400ग्राम
हड्डियों की संख्या – 206
धड़कने – 72बार

किशोरावस्था में शिक्षा का स्वरूप

1-किशोरावस्था में बालको में कई तरह के परिवर्तन होते है अतः उन्हे सही मार्गदर्शन देना चाहिए।

2- किशोरावस्था में प्रायः बालको को अपने नौकरी या व्यवसाय संबंधी चिंताएं रहती है अतः विद्यालय इसकी भी शिक्षा देनी चाहिए जिससे इन्हे फ्यूचर में समस्याएं न हो।

3- किशोरावस्था में बालको के साथ बच्चो जैसा नहीं अपितु मित्रवत एवं वयस्को जैसा व्यवहार करना चाहिए।

4- किशोरावस्था में काम प्रवृत्ति प्रबल होती है अतः विद्यालय यौन शिक्षा संबंधी सुविधाएं भी होनी चाहिए।

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